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5वें भोपाल लिट्रेचर फेस्टिवल का हुआ भव्य शुभारंभ, डॉ. चंद्रा बोले- भविष्य गढ़ने में साहित्य का योगदान अहम, अर्थव्यवस्था से लेकर LGBTQ समुदाय पर हुई चर्चा।

by Editor
January 14, 2023
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5वें भोपाल लिट्रेचर फेस्टिवल का हुआ भव्य शुभारंभ, डॉ. चंद्रा बोले- भविष्य गढ़ने में साहित्य का योगदान अहम, अर्थव्यवस्था से लेकर LGBTQ समुदाय पर हुई चर्चा।
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  • कई अहम लेखकों ने की अपनी पुस्तकों पर बात
  • वी आर नॉट अदर्स पुस्तक पर हुई चर्चा

भोपाल। (TNA News Network) 13 जनवरी शुक्रवार के दिन को भोपाल के भारत भवन में नॉलेज महाकुंभ भोपाल लिटरेचर फेस्टिवल का शुभारंभ हुई। यह भोपाल लिटरेचर फेस्टिवल का पांचवा संस्करण है। इसकी शुरुआत पद्मश्री भालू मोंधे की फोटोग्रफी एग्बीविशन पर दीप प्रज्जवलन से किया गया। इस दौरान चर्चित पुस्तक ‘डायमंड्स आर फॉरएवर, सो आर मोरल्स’ के लेखक एवं उद्योगपति गोविन्द ढोलकिया, शीर्ष अमेरिकी-भारतीय वास्तुकार क्रिस्टोफर बेनिंगर, राघव चंद्रा, अभिलाष खांडेकर एवं डीके मेहता, हरूर हबीब के साथ अन्य लोग भी मौजूद रहे। उत्सव में शुरूआत पंडित उमाकांत गुंदेचा एवं अनंत गुंदेचा ने ध्रुपद गायन से की गई। जिसमें उन्होंने राग सरस्वति में अलाप की प्रस्तुति दी।इसके बाद कलाकारों ने सरस्वति वंदना की प्रस्तुति दी गई।


फेस्टिवल की जानकारी देते हुए चंद्रा ने कहा कि साहित्य का बहुत महत्व है और भविष्य को गढ़ने में इसका अहम योगदान है। किताबें जिंदगी भर चलती हैं, किताबों का वर्णन बदला जा सकता है, लेकिन वे हमेशा अमर रहती हैं। यह फेस्टिवल साहित्य और ज्ञान का संगम है। जिसमें से कुछ न कुछ ज्ञान जरूर प्राप्त कर सकेंगे।

समाज का लिंग के आधार पर बंटवारा गंभीर और अपूरणीय क्षति : कल्कि


साहित्य में सभी लिंगों को समान प्रतिनिधित्व देने के मुद्दे पर मशहूर लेखक कल्कि सुब्रमण्यम ने अपने विचार रखे। कल्कि ने भोपाल लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे सत्र में हरिकीर्तन रघुराम से बातचीत की। कल्कि ‘वी आर नॉट द अदर्स’ नाम की बहुप्रतीक्षित किताब की लेखक हैं। कल्कि ने बताया कि उनकी ये किताब कविताओं, निबंधों, वास्तविक जीवन की बातचीत, कला और चित्रों का एक संग्रह है। ‘वी आर नॉट द अदर्स’ किताब ट्रांसजेंडर्स के मुद्दे पर बात करती है। ये किताब उस नजरिए को चुनौती देती है, जो LGBTQ समुदाय को समाज से अलग थलग प्रस्तुत करना चाहता है। किताब के जरिए इस मानसिकता पर गहरी चोट की गई है। ट्रांसजेंडर्स के सपने, इच्छा, आशा, दर्द और पीड़ा को कल्कि ने इस किताब में बयां किया है। कल्कि ने बातचीत के दौरान कहा कि हम सभी इंसान हैं, ये बात सार्वभौमिक है। रूढ़िवादिता को चुनौती देते हुए कल्कि ने कहा कि लोगों को श्रेणियों में बांटकर हम समाज के साथ एक गंभीर अन्याय कर रहे हैं, ये अपूरणीय क्षति है। उन्होंने आगे भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय के सामने आने वाली समस्याओं के बारे में बात की। समाज कैसे उनके साथ उदासीनता बरतता है और उन्हें किस तरह महत्व नहीं दिया जाता। कल्कि की कविता और वास्तविक जीवन के अनुभव उन लोगों की आंखें खोलने का काम करेंगे जो अब भी ट्रांसजेंडर पुरुषों या महिलाओं को समाज पर “बोझ” के रूप में देखते हैं।

कई बार भारत के नक्शे को बदल, राज्यों को जोड़ा गया: डॉ संजीव चोपड़ा


फेस्टिवल में अंतरंग में आयोजित पहले सत्र की शुरूआत पूर्व आईएएस डॉ संजीव चोपड़ा की पुस्तक मैप्स एंड माइलस्टोन पर चर्चा से की गई। पुस्तक के बारे में बताते हुये उन्होंने 1947 के नक्शे को बताया। कहा कि साल 1947 आजादी के समय सिर्फ एक भारत था। लेकिन कई बार भारत के नक्शे को बदला गया और नक्शे में कई राज्यों को जोड़ा गया। उन्होंने कहा कि जिन देशों ने अपने आपको नहीं बदला वे देश दुनिया से ही गायब हो गये। साल 1952 से लेकर साल 1959 तक तिब्बक भारत के नक्शे में नहीं था। उस समय तिब्बत राज्य को अलग कर दिया गया था एवं साल 1961 में गोवा राज्य को भारत में विलय किया गया और इससे पहले गोवा राज्य फ्रांस एवं ब्रिटिश के पास था। लेकिन साल 1961 में विलय के बाद भारत का पहला समझौता फ्रांस के साथ हुआ। पुस्तक पर की नोटस बताते हुये कहा कि साल 1963 में नागालेंड को भारत में मिलाया गया और धीरे धीरे भारत के नक्शे में भारत के आंतरिक भूगोल की पृष्ठ भूमि देखने को मिलती है।

रूक्मणी देवी ने पारंपरिक भारतीय कला और शिल्प की पुन: स्थापना का काम किया


अंतरंग के दूसरे सत्र में देवदासिस- दी वुमन ऑफ प्राइड पुस्तक पर एक हजार साल पहले तंजौर गांव के मंजिर में युवा नृत्यांगनाएं होती थीं। उन्होंने सदियों तक नृत्य और संगीत की कलाओं को संरक्षित रखा। वे निपुण महिलाएँ थीं और असंख्य प्रसिद्ध मंदिर-नर्तकियों को संतों ने अपने गीतों में अमर कर दिया है। समाज देवदासियों को धर्म के नाम पर महिलाओं के शोषण के रूप में देखते थे। नृत्यांगना रूक्मणी देवी भी देवदासी भी उसी परंपरा से थीं। उन्होंने पारंपरिक भारतीय कला और शिल्प की पुन: स्थापना के लिए भी काम किया। मंदिर नर्तक, देवदासियों के बीच प्रचलित भरतनाट्यम की एक विधा ‘साधिर’ के पुनरुत्थान और पहचान दिलाने का श्रेय भी रुक्मिणी देवी को जाता है। उन्होंने इस नृत्य शैली को अंतरराष्ट्रीय स्तर की बुलंदियों पर पहुंचाया।


फेस्टिवल में मेकिंग लिटरेचर एल जी बी टी क्यू न्यूट्रल, क्रिएटिंग अ प्राइवेट म्यूजियम, चैलेंजेज एंड थ्रिल्स, सस्टेनेबल आर्किटेक्चर, हिंदी सिनेमा व संगीत पर इंटरट्विनिंग लाइव्स, अ साइंटिस्ट’स विज़न फॉर अ न्यू इंडिया, डायमंड्स आर फॉरएवर, मेकिंग इंडिया अ 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनोमी, दी आर्ट ऑफ राइटिंग प्राइज विनिंग शार्ट स्टोरीज, फ्लाइंग अराउंड थे वर्ल्ड तथा वुमन इन लव विषयों पर परिचर्चाएं हुईं।

न्यू इंडिया के लिए सिर्फ एक ही आइडिया आवश्यक है, धर्म : गौतम आर देसीराजू


भोपाल लिट्रेचर एंड आर्ट फेस्टिवल के रंगदर्शनी प्रांगण में हुए कार्यक्रम में ‘A Scientist’s Vision for a New India’ पर बातचीत करते हुए गौतम आर देसीराजू ने बताया कि, भारत के लिए एक आइडिया ही आवश्यक है वो है धर्म। क्या गलत है, क्या सही है इसको जानना ही धर्म है। यहां तक की अर्थ को भी धर्म की जरूरत पड़ती है। आज हमें यह सोचकर निराश नहीं होना है कि हमारा संविधान सही नहीं लिखा गया है बल्कि हमें धार्मिक स्वभाव के एक नए संविधान को लिखने का प्रयास करना चाहिए। क्योंकि इन सभी चीजों का मूलभूत स्ट्रक्चर केवल धर्म पर ही आधारित है। अपनी किताब भारत: इंडिया 2.0 के बारे में चर्चा करते हुए वैज्ञानिक गौतम आर देसीराजू ने बताया, लोग मुझसे पूछते हैं कि आपने इस किताब का नाम 2.O क्यों रखा? एक वैज्ञानिक का जीवन केवल अपने काम के लिए ही प्रतिबद्ध होता है। पैंडेमिक में मिले खाली समय में मैंने संविधान को पढ़ना शुरू किया। तब जाकर मुझे यह लगा कि किसी भी देश का बेसिक स्ट्रक्चर धर्म पर ही होना चाहिए। क्योंकि हम वैज्ञानिक समाधान देने में भरोसा रखते हैं। मैं तकरीबन 40 देशों की यात्रा कर चुका हूं। एक चीज जो पूरे विश्व के सभी देश करते है कि वो हमेशा अपने मजबूत पक्ष को दिखाते हैं लेकिन हम भारतीय आजादी के बाद से हमेशा अपने कमजोर पक्ष को आगे रखते हैं। हम क्यों नहीं अपने मजबूत पक्ष को आगे रख सकते हैं। हमारा देश अनेकता में एकता का देश है। हम सिविलाइज्ड हैं इसीलिए हमारे अंदर इतनी विविधता है और यही हमारी खूबी है।

अपना वर्तमान ही सुधार लें तो आपका भविष्य सुधर जाएगा: डायमंड किंग जी एल ढोलकिया


भोपाल लिटरेचर एंड आर्ट फेस्टिवल में पहुंचे डायमंड किंग जी एल ढोलकिया ने बताया कि हमें वैल्यू बेस्ड बिजनेस पर फोकस करना चाहिए। आज संख्याओं और गुणवत्ता में हमेशा गुणवत्ता को प्राथमिकता देनी चाहिए। आप भविष्य के लिए बहुत ज्यादा चिंतित ना हों। आप अपना वर्तमान ही सुधार लें तो आपका भविष्य सुधर जाएगा। प्रारब्ध और पुरुषार्थ हमारे रथ के दो पहिए होते हैं जो एक दूसरे के पूरक होते हैं। अगर इनमें से कोई एक सही से नहीं चला तो आपकी यात्रा नहीं हो सकती।हम डायमंड का बिजनेस करते हैं लेकिन हमारा ओपन चैलेंज है कि हमने कभी मुनाफे के लिए झूठ नहीं बोला है. हमारा बिजनेस मॉडल ही मॉरलिटी और वैल्यू पर है। हमें लाभ के लिए प्रयत्न करना चाहिए, पाप नहीं। मैं पूर्वजन्म को मानता हूं,कोई अदृश्य शक्ति काम करती है सृष्टि में। अपनी किताब ‘Diamond are Forever’ पर चर्चा करते हुए गोविंद काका ने बताया, मैं पिछले 40 साल से डायरी लिख रहा था. आज सब दुनिया में फिल्में देखते हैं लेकिन हम खुद की फिल्म कभी नहीं देख पाते। कोरोना में जब मुझे खाली समय मिला तो मेरे एक फ्रेंड ने बोला कि तुम किताब लिखो मैं तुम्हारी मदद करूंगा। मैं पहले झिझका लेकिन मेरी कंपनी का एक कोट है, आई एम नथिंग बट आई कैन. जब आप यह किताब पढ़ेंगे तो आप भी कहेंगे आई कैन।

अर्थव्यवस्था के लिए कोई शॉर्टकट अप्रोच नहीं होनी चाहिए: डॉ. अरुणा शर्मा


भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर हुई चर्चा में डॉ अरुणा शर्मा ने बताया कि, आज हम 5 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था के लिए काम कर रहे हैं, हमारे पास इसके लिए कोई शॉर्टकट अप्रोच नहीं होना चाहिए, बल्कि हमें इसके लिए एक पूरी तरह से सुनयोजित और समग्र अप्रोच के साथ काम करना चाहिए। हमें सामुदायिक भागीदारी पर काम करना चाहिए। कोरोना ने हमें बहुत कुछ सिखाया है। आज हमे कॉमन हाउसहोल्ड डेटाबेस को प्रमुखता देनी चाहिए। आज हमारे पास पोटेंशियल है, हमारे पास 80 परसेंट घरेलू बाजार हैं, हमें किसी दूसरे के ऊपर निर्भर नहीं होना है। 6g तकनीक के बारे में बताते हुए अरुणा शर्मा ने कहा कि हमे इसके लिए उत्सुक होना चाहिए लेकिन हमें साइबर सुरक्षा के लिए भी सतर्क होना पड़ेगा। कोरोना के समय टेलीकॉम सेक्टर ने बहुत सहायता की है। वहीं आईटी सेक्टर के प्रयासों के चलते आज भारत सरकार कोई भी नगद भुगतान नहीं करती। अपनी किताब में अरुणा शर्मा ने अर्थव्यवस्था को बढ़ाने वाले 15 सेक्टर्स को उल्लेखित किया है।

किताब लिखने से पहले पाठक के बारे में सोचता हूं: पी के दाश


शॉर्ट स्टोरी लिखने की कला पर बात करते हुए पी के दाश ने कहा कि आप हर हफ्ते एक कहानी लिखें। हो सकता है कुछ कहानियां अच्छी ना लगें, लेकिन 52 कहानियां आप खराब नहीं लिख सकते। किताब में भावनाओं तक पहुंच बढ़ाने के लिए किसी और के नजरिए से लिखने की कोशिश की। किताब लिखने से पहले पाठक के बारे में सोचता हूं। ये सोचता हूं कि इससे पाठक को क्या मिलेगा?
प्रोफेसर दिवाकर शुक्ला के सवाल का जवाब देते हुए पी के दाश ने कहा कि हर साल करीब 4 लाख किताबें प्रकाशित की जाती है, लेकिन लोग अपने जीवन में 720 से भी कम किताबें पढ़ पाते हैं। 70 वर्ष की उम्र तक इतना जो भी पढ़ ले उसे पढ़ा लिखा समझा जाता है। पी के दाश ने कहा कि हम सभी के पास कहानियां हैं, चाहे आप पढ़े लिखे हों या नहीं। अगर कोई भी पेन और पेपर लेकर बैठे तो उनके पास कहानियों का संसार होगा। बावजूद इसके लोग लिखने से ज़्यादा पढ़ना पसंद करते हैं। सत्र के दौरान पी के दाश ने किताब के एक मज़ेदार किस्से का ज़िक्र भी किया। उन्होंने नए लेखकों को बिना घबराए लिखने की सलाह भी दी।

हम भारतीय सैनिकों के लिए रीढ़ की हड्डी का काम करते हैं: नमृता


अक्सर हम अपने जीवन में ये सोचते रहते हैं कि हमें क्या नहीं चाहिए, इसके बजाय अगर हम इसपर ध्यान दें कि हम क्या चाहते हैं। सियाचिन जैसी मुश्किल परिस्थितियों में उड़ान भरने के बारे में बात करते हुए, नमृता ने कहा कि हम सैनिकों के लिए रीढ़ की हड्डी का काम करते हैं, यही वो चीज़ है जो हमें जज़्बा देती है कि हम वो करें जो किया जाना चाहिए। अपनी निजी और प्रोफेशनल जिंदगी में बैलेंस बनाने को लेकर नमृता ने कहा कि जीवन में ऐसा कभी नहीं होता कि आप इसमें परफेक्ट हो जाइए, बल्कि हमें इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि दिक्कतें आएंगी और हमें उनका सामना करना है, बिना घबराए। हर परिस्थिति में हमें बस ये ध्यान रखना है कि हम क्या हैं, और क्या बनना चाहते हैं।
डर से निजात पाने को लेकर नमृता ने कहा कि उन्हें जो परेशानियां थीं जो उनके पायलट बनने के खिलाफ थी। पहली दफा बहुत खराब अनुभव रहा, लेकिन उसके बाद मैंने खुद को अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकाला और फिर कभी दिक्कत नहीं हुई। नमृता ने कहा कि हमें अपने डर का सामना करना सीखना होगा। इसी तरीके से हम उस डर पर जीत हासिल कर सकते हैं।

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